मीना कुमारी की प्रॉपर्टी चर्चा में क्यों? अब कौन होगा करोड़ों की संपत्ति का मालिक, कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला
May 26, 2025, 10:00 IST
मीना कुमारी और कमाल अमरोही ने साल 1959 में मुंबई के पाली हिल में स्थित एक जमीन खरीदी थी जो एक बार फिर विवादों में है. गुजरे जमाने के इन सितारों की प्रॉपर्टी विवाद के कारण 162 परिवारों पर अपने ही घर से बेघर होने की तलवार लटक रही है. दशकों पहले दर्ज हुआ ये मामला इन दिनों फिर सुर्खियों में है.
हाइलाइट्स
- मीना कुमारी की प्रॉपर्टी विवाद में फंसी.
- 162 परिवारों को घर खाली करने का आदेश.
- बॉम्बे हाईकोर्ट में आदेश को चुनौती देंगे निवासी.
नई दिल्ली. हिंदी सिनेमा की ‘ट्रेजेडी क्वीन’ मीना कुमारी का नाम इन दिनों एक बार फिर लोगों की जुबां पर है, लेकिन इस बार एक्ट्रेस अपनी फिल्मों की वजह से नहीं बल्कि एक विवाद के चलते चर्चा में हैं. साल 1959 में मीना कुमारी ने पति और डायरेक्टर कमाल अमरोही के साथ मिलकर मुंबई के पाली हिल में 2.5 एकड़ की जमीन खरीदी थी जिसकी कीमत उस वक्त 5 लाख रुपए थी. मीना कुमारी के पति कमाल अमरोही ने इस जमीन को एक डेवलपर को लीज पर दिया जिसने उस पर ‘कोज़ीहोम को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी’ नाम से पांच इमारतें बनाईं. आज ये हाउसिंग सोसाइटी विवादों में घिर गई है और इसमें रहने वाले 162 परिवारों के अपने ही घर से बेघर होने की नौबत आ गई है.
इस विवाद की शुरुआत 1970 के दशक में हुई, जब कमाल अमरोही ने आरोप लगाया कि सोसाइटी ने तय किराया – ₹8,835 प्रति माह – पूरा नहीं चुकाया. पूरा किराया न देने के पीछे सोसाइटी का तर्क था कि जमीन का कुछ हिस्सा वास्तव में कमाल अमरोही के नाम पर नहीं था औऱ इसलिए कम किराया दिया गया.
क्या है मामला?
1991 में, कमाल अमरोही ने ₹66,060 के बकाया किराए के आधार पर सोसाइटी के खिलाफ बेदखली और जमीन को फिर से अपने नाम पर ट्रांसफर करने की याचिका दायर की. 1993 में उनके निधन के बाद, उनके बेटे ताजदार अमरोही ने यह केस आगे बढ़ाया. 23 अप्रैल 2025 को बांद्रा की स्मॉल कॉज कोर्ट ने ताजदार अमरोही और अर्हम लैंड डेवेलपर्स के पक्ष में फैसला सुनाया. कोर्ट ने सोसाइटी को छह महीने के भीतर ज़मीन खाली करने का आदेश दिया.
162 परिवारों पर लटकी तलवार
कोर्ट के इस आदेश के मद्देनजर इस सोसाइटी में रहने वाले 162 परिवारों को जमीन खाली करनी पड़ेगी. कोज़ीहोम सोसाइटी के निवासी, जिनमें से अधिकतर वरिष्ठ नागरिक हैं, अब बॉम्बे हाईकोर्ट में इस आदेश को चुनौती देने की तैयारी कर रहे हैं. उनका कहना है कि उन्होंने सारे बकाया किराए के साथ ब्याज भी चुका दिया है और बीते 20 वर्षों से किराया एक एस्क्रो अकाउंट में जमा किया जा रहा है.
कोर्ट ने अपने फैसले में लीज़ एग्रीमेंट की धारा 14(ए) का हवाला दिया, जिसमें स्पष्ट किया गया है कि यदि किराए की राशि को चुनौती दी जाती है या किराया समय पर नहीं चुकाया जाता है, तो ज़मीन के मालिक लीज़ रद्द कर सकते हैं और ज़मीन और उसपर बनी बिल्डिंग को अपने मालिकाना हक के तहत ले सकते हैं. कोर्ट ने यह भी कहा कि किराए का भुगतान नियमित रूप से नहीं किया गया और इसलिए लीज़ की शर्तों का उल्लंघन हुआ है. बांद्रा कोर्ट ने सोसाइटी की स्टे की याचिका भी खारिज कर दी.
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