भीम ने की थी निर्जला एकादशी की शुरुआत, जानिए किसके कहने पर रखा था व्रत

 

निर्जला एकादशी हिंदू धर्म में सबसे कठिन लेकिन सबसे पुण्यदायक व्रत माना जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है और ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशीको आता है। इस दिन जल तक का सेवन वर्जित होता है, इसलिए इसे "निर्जला" (अर्थात् बिना जल के) कहा जाता है। हालांकि बहुत कम लोग यह जानते होंगे कि निर्जला एकादशी के व्रत को रखने की शुरुआत कैसे हुई थी। तो चलिए आज हम बताते हैं इसके बारे में  

 


व्रत से जुड़ी कथा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महाभारत के बलशाली योद्धा भीम ने पहली बार यह व्रत रखा था। कहा जाता है कि जब सर्वज्ञ वेदव्यास ने पांडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया तो महाबली भीम ने निवेदन किया- पितामह! आपने तो प्रति पक्ष एक दिन के उपवास की बात कही है। मैं तो एक दिन क्या एक समय भी भोजन के बगैर नहीं रह सकता- मेरे पेट में 'वृक' नाम की जो अग्नि है, उसे शांत रखने के लिए मुझे कई लोगों के बराबर और कई बार भोजन करना पड़ता है। तो क्या अपनी उस भूख के कारण मैं एकादशी जैसे पुण्यव्रत से वंचित रह जाऊंगा?


 


भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जानी जाती है निर्जला एकादशी

पितामह ने भीम की समस्या का निदान करते और उनका मनोबल बढ़ाते हुए कहा- नहीं कुंतीनंदन, धर्म की यही तो विशेषता है कि वह सबको धारण ही नहीं करता, सबके योग्य साधन व्रत-नियमों की बड़ी सहज और लचीली व्यवस्था भी उपलब्ध करवाता है। अतः आप ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला नाम की एक ही एकादशी का व्रत करो और तुम्हें वर्ष की समस्त एकादशियों का फल प्राप्त होगा। निःसंदेह तुम इस लोक में सुख, यश और प्राप्तव्य प्राप्त कर मोक्ष लाभ प्राप्त करोगे। भीम ने पूरे दिन बिना जल और अन्न के व्रत करके यह सिद्ध कर दिखाया। तभी से यह एकादशी भीमसेनी एकादशी या पांडव एकादशी के नाम से भी प्रसिद्ध हो गई।


 

व्रत का महत्व

निर्जला एकादशी का व्रत करने से सभी 24 एकादशी व्रतों के बराबर पुण्य मिलता है। व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। पापों का नाश होता है और भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यह व्रत भीष्म पितामह द्वारा भी बताया गया है कि इसे करने से वैकुंठकी प्राप्ति होती है।


व्रत विधि 

1. व्रत की पूर्व रात्रि को हल्का और सात्विक भोजन लें।

2. एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले स्नान करें और व्रत का संकल्प लें।

3. पूरे दिन न जल, न अन्न, न फल– पूर्ण उपवास करें।

4. भगवान विष्णु की पूजा करें, तुलसी दल चढ़ाएं और विष्णु सहस्रनाम पढ़ें।

5. रात्रि में जागरण करें (यदि संभव हो)।

6. अगले दिन द्वादशी को व्रत का पारण करें – ब्राह्मण या गरीब को दान-दक्षिणा देकर।


 यह व्रत बहुत कठिन होता है, इसलिए बीमार, बुजुर्ग, गर्भवती महिलाएं या जो इस व्रत को न निभा सकें, वे फलाहार या जल से व्रत कर सकते हैं।

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